श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 28: ज्ञानी पुरुषकी स्थिति तथा अध्वर्यु और यतिका संवाद* » श्लोक 1 |
|
| | श्लोक 14.28.1  | ब्राह्मण उवाच
गन्धान् न जिघ्रामि रसान् न वेद्मि
रूपं न पश्यामि न च स्पृशामि।
न चापि शब्दान् विविधान् शृणोमि
न चापि संकल्पमुपैमि कंचित्॥ १॥ | | | अनुवाद | ब्राह्मण कहता है कि मैं न तो कोई सुगंध सूँघता हूँ, न कोई स्वाद लेता हूँ, न कोई रूप देखता हूँ, न किसी वस्तु का स्पर्श करता हूँ, न किसी प्रकार के वचन सुनता हूँ, न कोई संकल्प करता हूँ। ॥1॥ | | The Brahmin says, "I neither smell any fragrance, nor taste any flavour, nor see any form, nor touch any object, nor listen to any type of words, nor do I make any resolution." ॥1॥ |
| ✨ ai-generated | |
|
|