श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  14.27.8 
पञ्चवर्णानि दिव्यानि पुष्पाणि च फलानि च।
सृजन्त: पादपास्तत्र व्याप्य तिष्ठन्ति तद् वनम्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
वहाँ के वृक्ष सब ओर से वन को आवृत करते हुए पाँच प्रकार के रंगों वाले दिव्य पुष्प और फल उत्पन्न करते हैं ॥8॥
 
The trees there are situated covering the forest from all sides, producing divine flowers and fruits of five kinds of colours. ॥ 8॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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