श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 6
 
 
श्लोक  14.27.6 
न तत्राविश्य शोचन्ति न प्रहृष्यन्ति च द्विजा:।
न च बिभ्यति केषांचित् तेभ्यो बिभ्यति केचन॥ ६॥
 
 
अनुवाद
उस वन में प्रवेश करने पर ब्राह्मण जाति को न तो प्रसन्नता होती है, न दुःख। न तो वे स्वयं किसी प्राणी से भयभीत होते हैं, न ही कोई अन्य प्राणी उनसे भयभीत होता है ॥6॥
 
On entering that forest the Brahmin castes neither feel happy nor sad. Neither they themselves are afraid of any creature nor any other creature is afraid of them. ॥ 6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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