श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 5
 
 
श्लोक  14.27.5 
तस्माद् ह्रस्वतरं नास्ति न ततोऽस्ति महत्तरम्।
नास्ति तस्मात् सूक्ष्मतरं नास्त्यन्यत् तत्समं सुखम्॥ ५॥
 
 
अनुवाद
उससे छोटा, उससे बड़ा और उससे सूक्ष्म कोई वस्तु नहीं है। उसके समान सुखदायक कोई वस्तु नहीं है ॥5॥
 
There is no other thing smaller than that, bigger than that and more subtle than that. There is nothing as pleasant as that. ॥ 5॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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