श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  14.27.4 
ब्राह्मण उवाच
नैतदस्ति पृथग्भाव: किंचिदन्यत् तत: सुखम्।
नैतदस्त्यपृथग्भाव: किंचिद् दु:खतरं तत:॥ ४॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मण ने कहा - प्रिये! उस वन में न तो कोई भेद है और न ही कोई अभेद, वह दोनों से परे है। वहाँ सांसारिक सुख-दुःख नहीं है॥4॥
 
The Brahmin said - Dear! There is neither any difference nor any non-difference in that forest, it is beyond both. There is no worldly happiness and sorrow there. ॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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