श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  14.27.3 
ब्राह्मण्युवाच
क्व तद् वनं महाप्राज्ञ के वृक्षा: सरितश्च का:।
गिरय: पर्वताश्चैव कियत्यध्वनि तद् वनम्॥ ३॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मणी ने पूछा, "हे महर्षि! वह वन कहाँ है? वहाँ कौन-कौन से वृक्ष, पर्वत, नदियाँ और पहाड़ियाँ हैं और वह कितनी दूर है?"
 
The Brahmin lady asked - O great sage! Where is that forest? Which trees, mountains, streams and hills are there and how far is it?
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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