श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन » श्लोक 22 |
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| | श्लोक 14.27.22  | कृशाशा: सुव्रताशाश्च तपसा दग्धकिल्बिषा:।
आत्मन्यात्मानमाविश्य ब्रह्माणं समुपासते॥ २२॥ | | | अनुवाद | जिनकी आशाएँ क्षीण हो गई हैं, जो उत्तम व्रतों का पालन करना चाहते हैं, जिनके पाप तपस्या द्वारा भस्म हो गए हैं, वे ही पुरुष अपनी बुद्धि को आत्मा में लगाकर परब्रह्म की आराधना करते हैं॥ 22॥ | | Those whose hopes have been waned, those who wish to follow the best vows, those whose sins have been burnt by austerity, those very men, by focusing their intellect on the self, worship the Supreme Being.॥ 22॥ |
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