श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  14.27.20 
गिरय: पर्वताश्चैव सन्ति तत्र समासत:।
नद्यश्च सरितो वारि वहन्त्यो ब्रह्मसम्भवम्॥ २०॥
 
 
अनुवाद
उस ब्रह्म में ही पर्वत, झरने, नदियाँ और जलधाराएँ स्थित हैं, जिनमें ब्रह्म द्वारा उत्पन्न जल प्रवाहित होता है।
 
In that Brahman itself are situated the mountains, waterfalls, rivers and streams, which flow the water generated by the Brahman. 20.
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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