श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  14.27.15 
प्रज्ञावृक्षं मोक्षफलं शान्तिच्छायासमन्वितम्।
ज्ञानाश्रयं तृप्तितोयमन्त:क्षेत्रज्ञभास्करम्॥ १५॥
 
 
अनुवाद
उसमें ज्ञानरूपी वृक्ष शोभायमान होते हैं, मोक्षरूपी फल लगते हैं और शान्त छाया फैलती है। ज्ञान ही वहाँ आश्रय है और संतोष ही जल है। उस वन में आत्मारूपी सूर्य का प्रकाश फैला रहता है॥ 15॥
 
Trees of wisdom look beautiful in it, fruits of salvation grow and a peaceful shade spreads. Knowledge is the shelter there and satisfaction is the water. The light of the sun in the form of the soul remains spread in that forest.॥ 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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