श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 27: अध्यात्मविषयक महान् वनका वर्णन  »  श्लोक 13
 
 
श्लोक  14.27.13 
एको वह्नि: सुमना ब्राह्मणोऽत्र
पञ्चेन्द्रियाणि समिधश्चात्र सन्ति।
तेभ्यो मोक्षा: सप्त फलन्ति दीक्षा
गुणा: फलान्यतिथय: फलाशा:॥ १३॥
 
 
अनुवाद
उस वन में एक ही अग्नि है, आत्मा शुद्ध ब्राह्मण है, पाँचों इन्द्रियाँ ईंधन हैं। इनसे जो मोक्ष प्राप्त होता है, वह सात प्रकार का है। इस यज्ञ का फल अवश्य मिलता है। गुण ही फल है। सात अतिथि फल के भोक्ता हैं॥13॥
 
There is only one fire in that forest, the soul is a pure Brahmin, the five senses are the fuel. The salvation that is attained from them is of seven types. The initiation of this yagya definitely has its fruits. The quality is the fruit. The seven guests are the consumers of the fruits.॥13॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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