श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 25: चातुर्होम यज्ञका वर्णन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  14.25.8 
विदुषां बुध्यमानानां स्वं स्वं स्थानं यथाविधि।
गुणास्ते देवताभूता: सततं भुञ्जते हवि:॥ ८॥
 
 
अनुवाद
नाना विषयों का अनुभव करने वाले विद्वानों की घ्राण आदि इन्द्रियाँ अपने-अपने स्थानों को विधिपूर्वक जानती हैं और देवताओं के स्वरूप होने के कारण वे सदैव हविष्य का उपभोग करती हैं ॥8॥
 
The senses of smell etc. of learned persons having experience of various subjects, know their respective places methodically and being in the form of deities, they always enjoy the offerings. ॥ 8॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.