श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 25: चातुर्होम यज्ञका वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  14.25.7 
स्वगुणं भक्षयन्त्येते गुणवन्त: शुभाशुभम्।
अहं च निर्गुणोऽनन्त: सप्तैते मोक्षहेतव:॥ ७॥
 
 
अनुवाद
ये श्वास आदि इन्द्रियाँ गुणों से युक्त हैं, इसलिए ये अपने विषयों के अच्छे-बुरे गुणों का भोग करती हैं। मैं निर्गुण और अनंत हूँ, (इनसे मेरा कोई सम्बन्ध न होने का ज्ञान होने पर) ये गंध आदि सात मोक्ष के साधन हैं। ॥7॥
 
These senses like breath etc. are endowed with qualities, hence they enjoy the qualities of their objects, good and bad. I am attributeless and infinite, (on understanding that I have no relation with them) these seven - smell etc. are the means of liberation. ॥ 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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