श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 25: चातुर्होम यज्ञका वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  14.25.17 
तत्र सामानि गायन्ति तत्र चाहुर्निदर्शनम्।
देवं नारायणं भीरु सर्वात्मानं निबोध तम्॥ १७॥
 
 
अनुवाद
तैत्तिरीयोपनिषद् के विद्वान् लोग 'एतत् समागयनस्त' आदि मन्त्रों के रूप में, भगवत्प्राप्ति के पश्चात् परमानंद से परिपूर्ण सिद्धों द्वारा किए जाने वाले समागम का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं। कायर! तू उन परमात्मा भगवान नारायणदेव का ज्ञान प्राप्त कर। 17॥
 
The scholars of Taittiriya-Upanishad present examples of the samaaga performed by siddhas who are filled with ecstasy after attaining Godhood, in the form of mantras like 'Etat Samagayanast' etc. Coward! You attain the knowledge of that Supreme Soul Lord Narayandev. 17॥
 
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि ब्राह्मणगीतासु पञ्चविंशोऽध्याय:॥ २५॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें ब्राह्मणगीताविषयक पचीसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २५॥

 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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