श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 25: चातुर्होम यज्ञका वर्णन  »  श्लोक 15
 
 
श्लोक  14.25.15 
कर्तानुमन्ता ब्रह्मात्मा होताध्वर्यु: कृतस्तुति:।
ऋतं प्रशास्ता तच्छस्त्रमपवर्गोऽस्य दक्षिणा॥ १५॥
 
 
अनुवाद
कर्ता (अहंकार), अनुमन्ता (मन) और आत्मा (बुद्धि) - ये तीनों ब्रह्मस्वरूप से क्रमशः होता, अध्वर्यु और उद्गाता का निर्माण करते हैं। सत्य बोलना प्रशस्ति का शस्त्र है और अपवर्ग (मोक्ष) उस यज्ञ की दक्षिणा है। 15॥
 
Karta (Ego), Anumanta (Mind) and Atma (Intellect) – these three in the form of Brahma form Hota, Adhvaryu and Udgaata respectively. Speaking the truth is the weapon of Prashasta and Apavarga (salvation) is the Dakshina of that Yagya. 15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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