श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 25: चातुर्होम यज्ञका वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  14.25.11 
हन्ता ह्यन्नमिदं विद्वान् पुनर्जनयतीश्वर:।
न चान्नाज्जायते तस्मिन् सूक्ष्मो नाम व्यतिक्रम:॥ ११॥
 
 
अनुवाद
जो विद्वान् पुरुष इस अन्न को खाता है, अर्थात् सम्पूर्ण पदार्थों को अपने में लीन कर लेता है, वह सर्वशक्तिमान् ईश्वर हो जाता है और पुनः अन्न आदि का निर्माता हो जाता है। उस अन्न से उस विद्वान् पुरुष में किंचितमात्र भी दोष उत्पन्न नहीं होता।॥11॥
 
The learned person who eats this food, i.e. absorbs all the material things in himself, becomes the omnipotent God and again becomes the creator of food etc. Not even the tiniest of defects arise in that learned person from that food.॥ 11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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