श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 23: प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  14.23.8 
प्राण उवाच
मयि प्रलीने प्रलयं व्रजन्ति
सर्वे प्राणा: प्राणभृतां शरीरे।
मयि प्रचीर्णे च पुनश्चरन्ति
श्रेष्ठो ह्यहं पश्यत मां प्रलीनम्॥ ८॥
 
 
अनुवाद
यह सुनकर प्राण अपान आदि से बोले - जब मैं लीन होता हूँ, तब प्राणियों के शरीर में जितने भी प्राण हैं, वे सब लीन हो जाते हैं और जब मैं प्रवाहित होता हूँ, तब वे सब प्रवाहित होने लगते हैं, इसलिए मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं लीन हो रहा हूँ (तब तुम भी लीन हो जाओगे)।॥8॥
 
On hearing this, the breath of life said to Apana etc. - When I dissolve, all the breaths in the body of living beings dissolve and when I circulate, all of them start circulating, therefore I am the best. Look, now I am dissolving (then you will also dissolve).॥ 8॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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