श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 23: प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना  »  श्लोक 4-6
 
 
श्लोक  14.23.4-6 
ब्राह्मण उवाच
प्राणेन सम्भृतो वायुरपानो जायते तत:।
अपाने सम्भृतो वायुस्ततो व्यान: प्रवर्तते॥ ४॥
व्यानेन सम्भृतो वायुस्ततोदान: प्रवर्तते।
उदाने सम्भृतो वायु: समानो नाम जायते॥ ५॥
तेऽपृच्छन्त पुरा सन्त: पूर्वजातं पितामहम्।
यो न: श्रेष्ठस्तमाचक्ष्व स न: श्रेष्ठो भविष्यति॥ ६॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मण ने कहा, "प्रिये! प्राण से पुष्ट होकर वायु अपान बन जाती है, अपान से पुष्ट होकर व्यान बन जाती है, व्यान से पुष्ट होकर उदान बन जाती है और उदान से पुष्ट होकर उसके समान हो जाती है। एक बार इन पाँचों वायुओं ने सबके पितामह ब्रह्माजी से पूछा, "प्रभो! कृपया हम लोगों में श्रेष्ठ का नाम बताइए, वही हम लोगों में प्रधान होगा।"॥4-6॥
 
The Brahmin said, "Dear! The air, being strengthened by Prana, becomes apana, being strengthened by apana, becomes vyana, being strengthened by vyana, becomes udana, being strengthened by udana, becomes equal to it. Once these five vayus asked the forefather of all, Pitamaha Brahmaji, "Lord! Please tell me the name of the best among us, he alone will be the chief among us."॥ 4-6॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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