श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 23: प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना  »  श्लोक 24
 
 
श्लोक  14.23.24 
परस्परस्य सुहृदो भावयन्त: परस्परम्।
स्वस्ति व्रजत भद्रं वो धारयध्वं परस्परम्॥ २४॥
 
 
अनुवाद
तुम सब शांतिपूर्वक जाओ। एक दूसरे के शुभचिंतक बनो, एक दूसरे की उन्नति में सहायक बनो और एक दूसरे का साथ दो।॥24॥
 
‘May you go in peace. Be well-wishers of one another and help each other in each other’s progress and support one another.’॥ 24॥
 
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि ब्राह्मणगीतासु त्रयोविंशोऽध्याय:॥ २३॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें ब्राह्मण-गीताविषयक तेईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २३॥

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके १ १/२ श्लोक मिलाकर कुल २५ १/२ श्लोक हैं)
 
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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