श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 23: प्राण, अपान आदिका संवाद और ब्रह्माजीका सबकी श्रेष्ठता बतलाना » श्लोक 17 |
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| | श्लोक 14.23.17  | मयि प्रलीने प्रलयं व्रजन्ति
सर्वे प्राणा: प्राणभृतां शरीरे।
मयि प्रचीर्णे च पुनश्चरन्ति
श्रेष्ठो ह्यहं पश्यत मां प्रलीनम्॥ १७॥ | | | अनुवाद | ‘जब मैं विलीन होता हूँ, तब प्राणियों के शरीरों की समस्त प्राणशक्तियाँ विलीन हो जाती हैं और जब मैं गति करता हूँ, तब वे सब गति करने लगते हैं। इसलिए मैं सर्वश्रेष्ठ हूँ। देखो, अब मैं विलीन हो रहा हूँ (तब तुम भी विलीन हो जाओगे)’॥17॥ | | ‘When I dissolve, all the life forces in the bodies of living beings dissolve and when I move, all of them start moving. That is why I am the best. Look, now I am dissolving (then you will also dissolve)’॥ 17॥ |
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