श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 8
 
 
श्लोक  14.22.8 
घ्राणं जिह्वा तथा श्रोत्रं वाङ्मनो बुद्धिरेव च।
न रूपाण्यधिगच्छन्ति चक्षुस्तान्यधिगच्छति॥ ८॥
 
 
अनुवाद
नाक, जीभ, कान, त्वचा, मन और बुद्धि से स्वरूप का ज्ञान नहीं होता; किन्तु नेत्रों से उसका अनुभव होता है ॥8॥
 
The nose, tongue, ears, skin, mind and intellect cannot attain the knowledge of the form; but the eyes can perceive it. ॥ 8॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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