श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 7
 
 
श्लोक  14.22.7 
घ्राणं चक्षुस्तथा श्रोत्रं वाङ्मनो बुद्धिरेव च।
न रसानधिगच्छन्ति जिह्वा तानधिगच्छति॥ ७॥
 
 
अनुवाद
नाक, कान, आँख, त्वचा, मन और बुद्धि- ये स्वाद नहीं ले सकते। केवल जीभ ही इनका स्वाद ले सकती है ॥7॥
 
Nose, ears, eyes, skin, mind and intellect-these cannot taste the flavours. Only the tongue can taste them. ॥ 7॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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