श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  14.22.4 
ब्राह्मण्युवाच
सूक्ष्मेऽवकाशे सन्तस्ते कथं नान्योन्यदर्शिन:।
कथंस्वभावा भगवन्नेतदाचक्ष्व मे प्रभो॥ ४॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मणी ने पूछा - हे प्रभु! जब हम सब सूक्ष्म शरीर में रहते हैं, तो एक-दूसरे को देख क्यों नहीं पाते? हे प्रभु! उनका स्वरूप क्या है? कृपा करके मुझे यह बताइए॥4॥
 
The Brahmin lady asked - O Lord! When all of us live in subtle bodies, then why are we unable to see each other? O Lord! What is their nature? Kindly tell me this.॥ 4॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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