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श्लोक 14.22.29  |
कामं तु न: स्वेषु गुणेषु सङ्ग:
कामं च नान्योन्यगुणोपलब्धि:।
अस्मान् विना नास्ति तवोपलब्धि-
स्तावदृते त्वां न भजेत् प्रहर्ष:॥ २९॥ |
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अनुवाद |
चाहे हम अपने-अपने गुणों में आसक्त हों और भले ही एक-दूसरे के गुणों को जानने में असमर्थ हों, फिर भी यह सत्य है कि हमारी सहायता के बिना आपको कुछ भी अनुभव नहीं हो सकता। आपके बिना हम केवल सुख से ही वंचित हैं ॥29॥ |
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Even if we are attached to our own qualities and even if we are unable to know each other's qualities, it is true that you cannot experience anything without our help. Without you, we are deprived of only happiness. ॥ 29॥ |
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इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि ब्राह्मणगीतासु द्वाविंशोऽध्याय:॥ २२॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें ब्राह्मणगीताविषयक बाईसवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ २२॥
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