श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  14.22.27 
बहूनपि हि संकल्पान् मत्वा स्वप्नानुपास्य च।
बुभुक्षया पीडॺमानो विषयानेव धावति॥ २७॥
 
 
अनुवाद
भोगों की इच्छा से पीड़ित प्राणी अनेक विचारों का ध्यान करता हुआ तथा स्वप्नों का आश्रय लेकर केवल सांसारिक भोगों की ओर ही दौड़ता है ॥27॥
 
A being tormented by the desire for enjoyment, meditating on many thoughts and taking refuge in dreams, runs only towards worldly pleasures. ॥27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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