श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन » श्लोक 24-25 |
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| | श्लोक 14.22.24-25  | यथा हि शिष्य: शास्तारं श्रुत्यर्थमभिधावति।
तत: श्रुुतमुपादाय श्रुत्यर्थमुपतिष्ठति॥ २४॥
विषयानेवमस्माभिर्दर्शितानभिमन्यसे।
अनागतानतीतांश्च स्वप्ने जागरणे तथा॥ २५॥ | | | अनुवाद | जैसे शिष्य शास्त्रों का अर्थ जानने के लिए अपने गुरु के पास जाता है और उनसे शास्त्रों का अर्थ जानकर स्वयं उसका मनन करता है और उसका पालन करता है, वैसे ही तुम सोते-जागते हमारे द्वारा दिखाए गए भूत और भविष्य का भोग करो ॥24-25॥ | | Just as a disciple goes to his teacher to learn the meaning of the scriptures and after learning the meaning of the scriptures from him, he ponders over it and follows it himself, similarly, while sleeping and waking you enjoy the past and future shown to you by us. ॥24-25॥ |
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