श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 20-22
 
 
श्लोक  14.22.20-22 
अथवास्मासु लीनेषु तिष्ठत्सु विषयेषु च।
यदि संकल्पमात्रेण भुङ्‍क्ते भोगान् यथार्थवत्॥ २०॥
अथ चेन्मन्यसे सिद्धिमस्मदर्थेषु नित्यदा।
घ्राणेन रूपमादत्स्व रसमादत्स्व चक्षुषा॥ २१॥
श्रोत्रेण गन्धानादत्स्व स्पर्शानादत्स्व जिह्वया।
त्वचा च शब्दमादत्स्व बुद्धॺा स्पर्शमथापि च॥ २२॥
 
 
अनुवाद
चाहे हमारी समस्त इन्द्रियाँ विषयों में लीन हो जाएँ या स्थित रहें, यदि तुममें संकल्पमात्र से विषयों को उनके वास्तविक स्वरूप में अनुभव करने की शक्ति है और तुम ऐसा करने में सदैव सफल होते हो, तो कम से कम नाक से रूप का अनुभव करो, आँखों से रस का स्वाद लो और कानों से गंध का अनुभव करो। इसी प्रकार अपनी शक्तियों से जीभ से स्पर्श का, त्वचा से शब्द का और बुद्धि से स्पर्श का अनुभव करो।॥20-22॥
 
Or whether all our senses get absorbed or remain situated in the objects, if you have the power to experience the objects in their true form by mere determination and you always succeed in doing so, then at least experience the form through the nose, taste the juice with the eyes and perceive the smells through the ears. Similarly, with your powers, experience the touch through the tongue, sound through the skin and touch through the intellect.॥ 20-22॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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