श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 19
 
 
श्लोक  14.22.19 
यद्यस्मासु प्रलीनेषु तर्पणं प्राणधारणम्।
भोगान् भुङ्‍क्ते भवान् सत्यं यथैतन्मन्यते तथा॥ १९॥
 
 
अनुवाद
यदि तुम हमारे विलीन होने पर भी संतुष्ट रह सको, सब प्रकार के सुखों को भोग सको, तो तुम जो कुछ कहते और मानते हो, वह सत्य हो सकता है ॥19॥
 
If you are able to remain satisfied even after our dissolution, are able to live and enjoy all kinds of pleasures, then whatever you say and believe can become true. ॥ 19॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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