श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  14.22.18 
इन्द्रियाण्यूचु:
एवमेतद् भवेत् सत्यं यथैतन्मन्यते भवान्।
ऋतेऽस्मानस्मदर्थांस्त्वं भोगान् भुङ्‍क्ते भवान् यदि॥ १८॥
 
 
अनुवाद
यह सुनकर इन्द्रियाँ बोलीं - महाराज ! यदि आप भी हमारी सहायता के बिना इन्द्रिय-विषयों का अनुभव कर सकते, तो हम आपकी बात को सत्य मान लेते ॥18॥
 
Hearing this the senses said - Sir! If you too could experience the sense-objects without our help then we would have accepted your statement as true.॥ 18॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.