श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 17
 
 
श्लोक  14.22.17 
काष्ठानीवार्द्रशुष्काणि यतमानैरपीन्द्रियै:।
गुणार्थान् नाधिगच्छन्ति मामृते सर्वजन्तव:॥ १७॥
 
 
अनुवाद
संसार के सभी प्राणी अपनी इन्द्रियों द्वारा प्रयत्न करने पर भी मेरे बिना विषयों का अनुभव नहीं कर सकते, जैसे कोई भी सूखी या गीली लकड़ी का अनुभव नहीं कर सकता ॥17॥
 
All the living beings in the world, despite making efforts through their senses, cannot experience the objects without Me, just as no one can experience dry or wet wood. ॥ 17॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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