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श्री महाभारत
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पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व
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अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन
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श्लोक 16
श्लोक
14.22.16
अगाराणीव शून्यानि शान्तार्चिष इवाग्नय:।
इन्द्रियाणि न भासन्ते मया हीनानि नित्यश:॥ १६॥
अनुवाद
मेरे बिना सारी इन्द्रियाँ बुझी हुई अग्नि के समान या सदा वैभवहीन उजाड़ घर के समान प्रतीत होती हैं॥16॥
‘Without Me all the senses seem to be like a fire with extinguished flames or a desolate house, always destitute of all glory.॥ 16॥
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हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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