श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  14.22.12 
घ्राणं जिह्वा च चक्षुश्च त्वक् श्रोत्रं मन एव च।
न निष्ठामधिगच्छन्ति बुद्धिस्तामधिगच्छति॥ १२॥
 
 
अनुवाद
इसी प्रकार नाक, जीभ, आँख, त्वचा, कान और मन - ये भी कुछ निश्चय नहीं कर सकते। निश्चयात्मक ज्ञान तो बुद्धि से ही प्राप्त होता है॥12॥
 
Similarly, the nose, tongue, eyes, skin, ears and mind - they cannot decide anything. Definite knowledge is attained only by the intellect.॥ 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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