श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 22: मन-बुद्धि और इन्द्रियरूप सप्त होताओंका, यज्ञ तथा मन-इन्द्रिय-संवादका वर्णन  »  श्लोक 11
 
 
श्लोक  14.22.11 
घ्राणं जि ह्वा च चक्षुश्च त्वक् श्रोत्रं बुद्धिरेव च।
संशयं नाधिगच्छन्ति मनस्तमधिगच्छति॥ ११॥
 
 
अनुवाद
नासिका, जिह्वा, नेत्र, त्वचा, कान और बुद्धि- इनमें संशय (चिंतन) नहीं हो सकता। यही काम मनका है॥11॥
 
Nose, tongue, eyes, skin, ears and intellect-these cannot have doubts (reflections). This is the Kama Manka.॥ 11॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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