श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 21: दस होताओंसे सम्पन्न होनेवाले यज्ञका वर्णन तथा मन और वाणीकी श्रेष्ठताका प्रतिपादन  »  श्लोक 12
 
 
श्लोक  14.21.12 
ब्राह्मण उवाच
तामपान: पतिर्भूत्वा तस्मात् प्रेषत्यपानताम्।
तां गतिं मनस: प्राहुर्मनस्तस्मादपेक्षते॥ १२॥
 
 
अनुवाद
ब्राह्मण ने कहा - "प्रिये! अपान पति होकर उस मन को अपानभाव की ओर ले जाता है। अपानभाव की प्राप्ति मन की गति कही गई है, इसीलिए मन उससे अपेक्षाएँ रखता है॥ 12॥
 
The Brahmin said, "Dear! Apana, being the husband, takes that mind towards Apanabhaav. The attainment of Apanabhaav is said to be the movement of the mind, that is why the mind has expectations from it.॥ 12॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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