श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 2: श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना » श्लोक 8 |
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| | श्लोक 14.2.8  | त्यज शोकं महाराज भवितव्यं हि तत्तथा।
न शक्यास्ते पुनर्द्रष्टुुं त्वया येऽस्मिन् रणे हता:॥ ८॥ | | | अनुवाद | महाराज! शोक त्याग दीजिए, क्योंकि जो कुछ हुआ, वह अवश्यंभावी था। इस युद्ध में मारे गए लोगों को आप फिर कभी नहीं देख पाएँगे। | | ‘Maharaj! Give up your grief, because whatever has happened was inevitable. You will never see those who have died in this war again.' |
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