श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 2: श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना  »  श्लोक 20
 
 
श्लोक  14.2.20 
स कथं सर्वधर्मज्ञ: सर्वागमविशारद:।
परिमुह्यसि भूयस्त्वमज्ञानादिव भारत॥ २०॥
 
 
अनुवाद
हे भारत! तुम सब धर्मों के ज्ञाता और सब शास्त्रों के विद्वान होकर भी अज्ञानवश बार-बार मोह में क्यों पड़ते हो?॥20॥
 
Bharat! Despite being the knower of all religions and a scholar of all the scriptures, why do you repeatedly fall into temptation due to ignorance?'॥ 20॥
 
इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अश्वमेधपर्वणि द्वितीयोऽध्याय:॥ २॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अश्वमेधपर्वमें दूसरा अध्याय पूरा हुआ॥ २॥

(दाक्षिणात्य अधिक पाठके २ श्लोक मिलाकर कुल २२ श्लोक हैं)
 
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.