श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 2: श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना  »  श्लोक 18
 
 
श्लोक  14.2.18 
असकृच्चापि संदेहाश्छिन्नास्ते कामजा मया।
अश्रद्दधानो दुर्मेधा लुप्तस्मृतिरसि ध्रुवम्॥ १८॥
 
 
अनुवाद
मैंने अनेक बार तुम्हारे कामजनित संशय दूर किए हैं; परंतु अपनी मूर्खता के कारण तुम उन पर विश्वास नहीं करते, इसलिए निश्चय ही तुम्हारी स्मृति नष्ट हो गई है॥18॥
 
Many a times I have dispelled your doubts arising out of lust; but because of your foolishness you do not believe in them. That is why you have surely lost your memory.॥ 18॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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