श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 2: श्रीकृष्ण और व्यासजीका युधिष्ठिरको समझाना  »  श्लोक 14-15
 
 
श्लोक  14.2.14-15 
तमेवं वादिनं पार्थं व्यास: प्रोवाच धर्मवित्॥ १४॥
सान्त्वयन् सुमहातेजा: शुभं वचनमर्थवत्।
अकृता ते मतिस्तात पुनर्बाल्येन मुह्यसे॥ १५॥
 
 
अनुवाद
कुन्तीपुत्र युधिष्ठिर को इस प्रकार बोलते देख धर्मतत्त्व को जानने वाले महाबली व्यास ने इन शुभ एवं अर्थपूर्ण वचनों से उन्हें सान्त्वना दी - 'पुत्र! तुम्हारी बुद्धि अभी शुद्ध नहीं हुई है। तुम बालसुलभ अविवेक के कारण पुनः मोह में पड़ गए हो।॥ 14-15॥
 
Seeing Kunti's son Yudhishthira talking like this, the mighty Vyasa, who knew the essence of religion, consoled him with these auspicious and meaningful words - 'Son! Your intellect has not yet become pure. You have once again fallen prey to delusion due to childish indiscretion.॥ 14-15॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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