श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन » श्लोक 6-7 |
|
| | श्लोक 14.17.6-7  | सिद्ध उवाच
आयु:कीर्तिकराणीह यानि कृत्यानि सेवते।
शरीरग्रहणे यस्मिंस्तेषु क्षीणेषु सर्वश:॥ ६॥
आयु:क्षयपरीतात्मा विपरीतानि सेवते।
बुद्धिर्व्यावर्तते चास्य विनाशे प्रत्युपस्थिते॥ ७॥ | | | अनुवाद | सिद्धन ने कहा - काश्यप! मनुष्य जो कर्म करता है, जिनसे इस लोक में उसकी आयु और यश बढ़ता है, वे ही शरीर प्राप्ति के कारण हैं। शरीर-ग्रहण के पश्चात् जब वे सभी कर्म अपना फल देकर क्षीण हो जाते हैं, उस समय जीव की आयु भी क्षीण हो जाती है। उस अवस्था में वह विपरीत कर्मों का सेवन करने लगता है और जब प्रलय का समय निकट आता है, तब उसकी बुद्धि उलट जाती है। 6-7॥ | | Siddhan said – Kashyap! The actions that a man performs which increase his life and fame in this world are the reasons for attaining the body. After the eclipse of the body, when all those actions give their results and diminish, at that time the lifespan of the living being also diminishes. In that state, he starts consuming opposite deeds and when the time of destruction approaches, his intellect becomes inverted. 6-7॥ |
| ✨ ai-generated | |
|
|