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श्लोक 14.17.42  |
उपपत्तिं तु वक्ष्यामि गर्भस्याहमत: परम्।
तथा तन्मे निगदत: शृणुष्वावहितो द्विज॥ ४२॥ |
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अनुवाद |
अब मैं तुम्हें बताता हूँ कि जीवात्मा किस प्रकार गर्भ में प्रवेश करती है और जन्म लेती है। हे ब्रह्मन्! इस विषय का मेरा वर्णन सुनने में मन लगाओ। ॥42॥ |
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Now I will tell you how a soul enters the womb and takes birth. O Brahman! Concentrate on listening to my description of this topic. ॥ 42॥ |
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इति श्रीमहाभारते आश्वमेधिके पर्वणि अनुगीतापर्वणि सप्तदशोऽध्याय:॥ १७॥
इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्वके अन्तर्गत अनुगीतापर्वमें सत्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ॥ १७॥
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