श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 40
 
 
श्लोक  14.17.40 
कर्मक्षयाच्च ते सर्वे च्यवन्ते वै पुन: पुन:।
तत्रापि च विशेषोऽस्ति दिवि नीचोच्चमध्यम:॥ ४०॥
 
 
अनुवाद
जब जीवों के पुण्यों का भोग समाप्त हो जाता है, तब वे वहाँ से नीचे गिर जाते हैं। इस प्रकार वे बार-बार आते-जाते रहते हैं। स्वर्ग में भी उत्तम, अधम और निकृष्ट का भेद है ॥40॥
 
When the enjoyment of the merits of the living beings is over, then they fall down from there. In this way they keep coming and going again and again. Even in heaven there is a distinction between the best, the mediocre and the worst. ॥ 40॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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