श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 4
 
 
श्लोक  14.17.4 
कथं शुभाशुभे चायं कर्मणी स्वकृते नर:।
उपभुङ्‍क्ते क्व वा कर्म विदेहस्यावतिष्ठते॥ ४॥
 
 
अनुवाद
मनुष्य अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल किस प्रकार भोगता है और जब उसका शरीर नहीं रहता, तब उसके कर्म कहाँ रहते हैं? ॥4॥
 
How does a man enjoy the results of his good and bad deeds and where do his deeds remain when his body is no more? ॥ 4॥
 ✨ ai-generated
 
 
  Connect Form
  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
  © copyright 2025 vedamrit. All Rights Reserved.