श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन » श्लोक 38-39 |
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| | श्लोक 14.17.38-39  | तच्छ्रुत्वा नैष्ठिकीं बुद्धिं बुद्धॺेथा: कर्मनिश्चयम्।
तारारूपाणि सर्वाणि यत्रैतच्चन्द्रमण्डलम्॥ ३८॥
यत्र विभ्राजते लोके स्वभासा सूर्यमण्डलम्।
स्थानान्येतानि जानीहि जनानां पुण्यकर्मणाम्॥ ३९॥ | | | अनुवाद | इसके सुनने से तुम्हें अपने कर्मों की गति का निश्चय हो जाएगा और तुम्हें नीतिबुद्धि प्राप्त होगी। जहाँ ये सब तारे हैं, जहाँ चन्द्रमा प्रकाशित है और जहाँ संसार में सूर्य चमक रहा है, वे सब पुण्यात्मा पुरुषों के स्थान हैं, ऐसा जान [पुण्यात्मा लोग उन लोकों में जाकर अपने पुण्य कर्मों का फल भोगते हैं]। 38-39॥ | | By listening to this, you will become certain about the dynamics of your actions and will gain moral wisdom. Where all these stars are, where the moon is illuminated and where the sun is shining in the world, all these are the places of virtuous people, know this [pious people go to those worlds and enjoy the fruits of their good deeds]. 38-39॥ |
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