श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 36
 
 
श्लोक  14.17.36 
इहैवाशुभकर्माण: कर्मभिर्निरयं गता:।
अवाग्गतिरियं कष्टा यत्र पच्यन्ति मानवा:।
तस्मात् सुदुर्लभो मोक्षो रक्ष्यश्चात्मा ततो भृशम्॥ ३६॥
 
 
अनुवाद
यहाँ पापी मनुष्य अपने कर्मों के अनुसार नरक में गिरते हैं। यह आत्मा का पतन है जो अत्यंत दुःखदायी है। इसमें गिरने के बाद पापी मनुष्य नरक की अग्नि में पकते हैं। इससे छुटकारा पाना अत्यंत कठिन है। अतः मनुष्य को नरक से बचने के लिए (पाप कर्मों से दूर रहकर) विशेष प्रयत्न करना चाहिए। ॥36॥
 
Here, the sinful human beings fall into hell according to their deeds. This is the downfall of the soul which is extremely painful. After falling into it, the sinful human beings are cooked in the fire of hell. It is very difficult to get rid of it. Therefore, one should make special efforts to save oneself from hell (by staying away from sinful deeds). ॥ 36॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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