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श्लोक 14.17.30  |
स जीव: प्रच्युत: कायात् कर्मभि: स्वै: समावृत:।
अभित: स्वै: शुभै: पुण्यै: पापैर्वाप्युपपद्यते॥ ३०॥ |
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अनुवाद |
शरीर से अलग होने के बाद आत्मा अपने ही अच्छे-बुरे कर्मों और पापकर्मों से चारों ओर से घिर जाती है ॥30॥ |
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After being separated from the body, the soul is surrounded on all sides by its own good and bad deeds and sinful actions. ॥ 30॥ |
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