श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 30
 
 
श्लोक  14.17.30 
स जीव: प्रच्युत: कायात् कर्मभि: स्वै: समावृत:।
अभित: स्वै: शुभै: पुण्यै: पापैर्वाप्युपपद्यते॥ ३०॥
 
 
अनुवाद
शरीर से अलग होने के बाद आत्मा अपने ही अच्छे-बुरे कर्मों और पापकर्मों से चारों ओर से घिर जाती है ॥30॥
 
After being separated from the body, the soul is surrounded on all sides by its own good and bad deeds and sinful actions. ॥ 30॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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