श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 3
 
 
श्लोक  14.17.3 
आत्मा च प्रकृतिं मुक्त्वा तच्छरीरं विमुञ्चति।
शरीरतश्च निर्मुक्त: कथमन्यत् प्रपद्यते॥ ३॥
 
 
अनुवाद
आत्मा प्रकृति (मूल ज्ञान) और उससे उत्पन्न शरीर को किस प्रकार त्यागता है और शरीर को त्यागकर दूसरे शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता है?॥3॥
 
How does the soul abandon nature (original knowledge) and the body that is born from it? And after leaving the body, how does it enter another?॥ 3॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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