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श्लोक 14.17.3  |
आत्मा च प्रकृतिं मुक्त्वा तच्छरीरं विमुञ्चति।
शरीरतश्च निर्मुक्त: कथमन्यत् प्रपद्यते॥ ३॥ |
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अनुवाद |
आत्मा प्रकृति (मूल ज्ञान) और उससे उत्पन्न शरीर को किस प्रकार त्यागता है और शरीर को त्यागकर दूसरे शरीर में किस प्रकार प्रवेश करता है?॥3॥ |
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How does the soul abandon nature (original knowledge) and the body that is born from it? And after leaving the body, how does it enter another?॥ 3॥ |
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