श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 28
 
 
श्लोक  14.17.28 
तत: सचेतनो जन्तुर्नाभिजानाति किंचन।
तमसा संवृतज्ञान: संवृतेष्वेव मर्मसु।
स जीवो निरधिष्ठानश्चाल्यते मातरिश्वना॥ २८॥
 
 
अनुवाद
फिर जब मृत्यु का समय आता है, तब चेतन रहते हुए भी प्राणी कुछ भी समझ नहीं पाता; क्योंकि उसकी ज्ञानशक्ति अंधकार (अज्ञान) से ढक जाती है। प्राण भी अवरुद्ध हो जाते हैं। उस समय प्राणी के लिए कोई आधार नहीं रहता और वायु उसे उसके स्थान से हटा देती है।॥28॥
 
Then when the time of death arrives, even though the being is conscious, he is unable to understand anything; because his knowledge power is covered by darkness (ignorance). The vital points also get blocked. At that time there is no support left for the being and the wind displaces it from its place.॥ 28॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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