श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 27
 
 
श्लोक  14.17.27 
तेषु मर्मसु भिन्नेषु तत: स समुदीरयन्।
आविश्य हृदयं जन्तो: सत्त्वं चाशु रुणद्धि वै॥ २७॥
 
 
अनुवाद
जब वे संवेदनशील स्थान (जोड़) अलग हो जाते हैं, तब ऊपर की ओर उठने वाली वायु जीव के हृदय में प्रवेश करती है और शीघ्र ही उसकी बुद्धि को अवरुद्ध कर देती है ॥27॥
 
When those sensitive spots (joints) are separated, the air rising upwards enters the heart of the living being and very soon obstructs his intellect. ॥27॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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