श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 26
 
 
श्लोक  14.17.26 
तथा यद्यद्‍भवेद्‍यु क्तंसंनिपाते क्वचित् क्वचित्।
तत्तन्मर्म विजानीहि शास्त्रदृष्टं हि तत् तथा॥ २६॥
 
 
अनुवाद
कहीं-कहीं शरीर का जो भी अंग जोड़ों से जुड़ता है, उसे प्राण-बिन्दु समझो; क्योंकि शास्त्रों में प्राण-बिन्दु के ऐसे लक्षण देखे गए हैं ॥26॥
 
In some places, whatever body part joins at the joints, consider that as a vital point; because in the scriptures such characteristics of a vital point have been observed. ॥ 26॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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