श्री महाभारत » पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व » अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन » श्लोक 23-24h |
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| | श्लोक 14.17.23-24h  | शरीरं च जहात्येवं निरुच्छ्वासश्च दृश्यते।
स निरूष्मा निरु च् छ्वासो नि:श्रीको हतचेतन:॥ २३॥
ब्रह्मणा सम्परित्यक्तो मृत इत्युच्यते नरै:। | | | अनुवाद | इस प्रकार जब आत्मा शरीर छोड़ देती है, तो जीव का शरीर निःश्वासहीन प्रतीत होता है। उसमें न तो ऊष्मा, न श्वास, न सौंदर्य और न ही चेतना शेष रहती है। इस प्रकार लोग उस शरीर को, जिसे आत्मा ने त्याग दिया है, मृत कहते हैं।॥23 1/2॥ | | In this way, when a soul leaves the body, the body of a living being appears breathless. There is no warmth, breath, beauty and consciousness left in it. In this way, people call that body, which has been abandoned by the soul, as dead.॥ 23 1/2॥ |
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