श्री महाभारत  »  पर्व 14: आश्वमेधिक पर्व  »  अध्याय 17: काश्यपके प्रश्नोंके उत्तरमें सिद्ध महात्माद्वारा जीवकी विविध गतियोंका वर्णन  »  श्लोक 2
 
 
श्लोक  14.17.2 
काश्यप उवाच
कथं शरीरं च्यवते कथं चैवोपपद्यते।
कथं कष्टाच्च संसारात् संसरन् परिमुच्यते॥ २॥
 
 
अनुवाद
कश्यप ने पूछा - महात्मा ! यह शरीर कैसे छूटता है ? फिर दूसरा शरीर कैसे प्राप्त होता है ? संसारी प्राणी इस दुःखमय संसार से कैसे मुक्त होता है ?॥ 2॥
 
Kashyap asked - Mahatma! How does this body fall away? Then how does one get another body? How does a worldly being get free from this sorrowful world?॥ 2॥
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  हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे। हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे॥
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